Friday 25 July 2014

God loves you- मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनकर तुझे बढ़ी- बड़ी और कठिन बातें बताऊंगा जिन्हें तू अभी नहीं समझता।


व्यर्य ही व्यर्य, व्यर्य ही व्यर्य! सब कुछ व्यर्य है।
उस सब परिश्र्म से जिसे मनुष्य धरती पर करता है
, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है? एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृय्वी सर्वदा बनी रहती है।
सूर्य उदय होकर अस्त भी होता है
, और अपके उदय की दिशा को वेग से चला जाता है।
वायु दक्खिन की ओर बहती है
, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपके चक्करोंमें लौट आती है।
सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं
, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्यान से नदियां निकलती हैं; उधर ही को वे फिर जाती हैं।
सब बातें परिश्र्म से भरी हैं
; मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकता; न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं।
जो कुछ हुआ या
, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है।
क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में लोग कह सकें कि देख यह नई है
? यह तो प्राचीन युगोंमें वर्तमान यी।
प्राचीन बातोंका कुछ स्मरण नहीं रहा, और होनेवाली बातोंका भी स्मरण उनके बाद होनेवालोंको न रहेगा।। 
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मैं उपकेशक यरूशलेम में इस्राएल का राजा या।

और मैं ने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है
, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूं; यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्वर ने मनुष्योंके लिथे ठहराया है कि वे उस में लगें।
मैं ने उन सब कामोंको देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं
; देखो वे सब व्यर्य और मानो वायु को पकड़ना है।
जो टेढ़ा है
, वह सीधा नहीं हो सकता, और जितनी वस्तुओं में घटी है, वे गिनी नहीं जातीं।।
मैं ने मन में कहा
, देख, जितने यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, उन सभोंसे मैं ने बहुत अधिक बुद्धि प्राप्त की है; और मुझ को बहुत बुद्धि और ज्ञान मिल गया है।
और मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि का भेद लूं और बावलेपन और मूर्खता को भी जान लूं। मुझे जान पड़ा कि यह भी वायु को पकड़ना है।।

क्योंकि बहुत बुद्धि के साय बहुत खेद भी होता है
, और जो अपना ज्ञान बढ़ाता है वह अपना दु:ख भी बढ़ाता है।।PRAYER

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